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वो इमाम इश्क़ ओ मोहब्बत है बरेली का रज़ा/वो रज़ा मेरा रज़ा मेरा रज़ा मेरा रज़ा है

(वो रज़ा मेरा रज़ा मेरा रज़ा मेरा रज़ा हैवो इमाम इश्क़-ओ-मोहब्बत है बरेली का रज़ा )


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टाइटल : वो रज़ा मेरा रज़ा मेरा रज़ा मेरा रज़ा है

श्रेणी (कटेगरी) : नात के बोल (लीरिक्स)

जोड़ा गया : 24 Sep, 2022 02:28 PM IST

बार देखा गया : 916

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वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है
वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है

वो इमाम 'इश्क़-ओ-मोहब्बत है बरेली का रज़ा
जिस ने कोई न किया काम है सुन्नत के सिवा

वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है
वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है

वाज़ेह सभी पे आयत-ए-क़ुरआन कर गया
महफूज़ सुन्नियों का जो ईमान कर गया
एहसान का न जिस के कोई भी हिसाब है

वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है
वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है

उठा क़लम तो 'इल्म के दरिया बहा दिए
घर घर नबी के ज़िक्र के जल्से सजा दिए
सर-ता-बा 'इल्म-ए-दीन का जो आफ़ताब है

वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है
वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है

जिस की हयात 'इश्क़-ए-नबी की किताब है
जिस का वुजूद वक़्फ़-ए-रिसालत-मआब है
जिस में नबी की ख़ुश्बू है ऐसा ग़ुलाब है

वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है
वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है

हर दम चमकता और दमकता रहेगा वो
दुनिया-ए-सुन्नियत में महकता रहेगा वो
जिस में नबी की ख़ुश्बू है ऐसा ग़ुलाब है

वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है
वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है

गुस्ताख़ी-ए-रसूल का नश्शा उतार दें
हम चाहें तो इसी से वहाबी को मार दें
अहमद रज़ा के नाम में वो आब-ओ-ताब है

वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है
वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है

उर्दू अदब की जान है और शान है रज़ा
ना'त-ए-नबी का हिन्द में हस्सान है रज़ा
नग़्मों में जिस के हुब्ब-ए-नबी की शराब है

वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है
वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है

अहमद रज़ा ने कंज़-उल-ईमान है दिया
हम को रसूल-ए-पाक का फ़ैज़ान है दिया
जो मस्लक-ए-रज़ा पे चले, कामियाब है

वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है
वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है

अख़्तर रज़ा का दामन-ए-शफ़क़त न छोड़िये
कुछ भी हो दस्त-ए-ताज-ए-शरी'अत न छोड़िये
वल्लाह ! फ़ख़्र-ए-अज़हरी 'इज़्ज़त-मआब है

वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है
वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है

होता है जिस का ज़िक्र ज़माने में कू-ब-कू
शोहरत है जिस के फ़त्वे की, तक़्वे की चार-सू
सज्जाद ! हर इमाम का वो इंतिख़ाब है

वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है
वो रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा, मेरा रज़ा है

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