
मुस्तफा हैं लाजवाब
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टाइटल : मैं नज़र करून जानओ जिगर कैसा लगेगा
श्रेणी (कटेगरी) : नात के बोल (लीरिक्स)
लेखक/गीतकार : असद इक़बाल कलकत्तावी
नातख्वान/कलाकार: असद इक़बाल कलकत्तावी
जोड़ा गया : 20 Oct, 2022 06:24 PM IST
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मैं नज़र करून जान-ओ-जिगर कैसा लगेगा,
रख दूँ दर-ऐ-सरकार पे सर कैसा लगेगा
आजाये मुकद्दर से शाह -ऐ-दिन जो मेरे घर,
मैं कैसा लगूँगा मेरा घर कैसा लगेगा
मैं नज़र करून जान-ओ-जिगर कैसा लगेगा
जब दूर से हैं इतना हसीं गुम्बद-ऐ-खज़रा,
इस पार है ऐसा तो उधर कैसा लगेगा
मैं नज़र करून जान-ओ-जिगर कैसा लगेगा
गोसूल-वरा से पूछ लू एक रोज़ यह चल कर,
बगदाद से तैबा का सफर कैसा लगेगा
मैं नज़र करून जान-ओ-जिगर कैसा लगेगा
आजाये तड़प के जो कहीं शेरे बरेली,
रूबह में वो शेरे बब्बर कैसा लगेगा
मैं नज़र करून जान-ओ-जिगर कैसा लगेगा
महशर की तमाज़त में वो कुदरत के फ़रिश्ते,
तोड़ेंगे जो नज़दी की कमर कैसा लगेगा
मैं नज़र करून जान-ओ-जिगर कैसा लगेगा,
रख दूँ दर-ऐ-सरकार पे सर कैसा लगेगा
अधिक लाइंस:
सरकार ने दर पे तुझे बुलवाया है मंगते,
जब कोई मुझे देगा खबर कैसा लगेगा
मैं नज़र करून जान-ओ-जिगर कैसा लगेगा
जिस हाथ से लिखूँगा मुहम्मद का कसीदा,
उस हाथ में जिबरील का पर कैसा लगेगा
मैं नज़र करून जान-ओ-जिगर कैसा लगेगा
रख लूँगा ईमामे पे जो नालेन-ऐ-मुक़द्दस,
शाहो के मुक़ाबिल मेरा सर कैसा लगेगा
मैं नज़र करून जान-ओ-जिगर कैसा लगेगा,
रख दूँ दर-ऐ-सरकार पे सर कैसा लगेगा