
मुस्तफा हैं लाजवाब
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टाइटल : Aakhri Roze Hain Dil Ghamnaak Muztar Jaan Hai
श्रेणी (कटेगरी) : नात के बोल (लीरिक्स)
लेखक/गीतकार : मौलाना मुहम्मद इलियास अत्तार कादरी रज़वी
नातख्वान/कलाकार: ओवैस रज़ा कादरी
जोड़ा गया : 18 Apr, 2023 08:35 PM IST
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आख़िरी रोज़े हैं दिल ग़मनाक मुज़्तर जान है
हसरता वा-हसरता ! अब चल दिया रमज़ान है
'आशिक़ान-ए-माह-ए-रमज़ाँ रो रहे हैं फूट कर
दिल बड़ा बेचैन है, अफ़्सुर्दा रूह-ओ-जान है
दर्द-ओ-रिक़्क़त से पछाड़ें खा के रोता है कोई
तो कोई तस्वीर-ए-ग़म बन कर खड़ा हैरान है
अल-फ़िराक़, आह ! अल-फ़िराक़, ए रब के मेहमाँ ! अल-फ़िराक़
अल-वदा'अ अब चल दिया तू, ऐ मह-ए-रमज़ान ! है
दास्तान-ए-ग़म सुनाएँ किस को जा कर आह ! हम
या रसूलल्लाह ! देखो चल दिया रमज़ान है
ख़ूब रोता है, तड़पता है ग़म-ए-रमज़ान में
जो मुसलमाँ क़द्र-दान-ओ-'आशिक़-ए-रमज़ान है
वक़्त-ए-इफ़्तार-ओ-सहर की रौनक़ें होंगी कहाँ !
चंद दिन के बा'द ये सारा समाँ सुनसान है
हाए ! सद अफ़्सोस ! रमज़ाँ की न हम ने क़द्र की
बे-सबब ही बख़्श दे, या रब ! की तू रहमान है
कर रहे हैं तुझ को रो रो कर मुसलमाँ अल-वदा'अ
आह ! अब तू चंद घड़ियों का फ़क़त मेहमान है
अस्सलाम, ऐ माह-ए-रमज़ाँ ! तुझ पे हों लाखों सलाम
हिज्र में अब तेरा हर 'आशिक़ हुआ बे-जान है
दस्त-बस्ता इल्तिजा है, हम से राज़ी हो के जा
बख़्शवाना हश्र में, हाँ ! तू मह-ए-ग़ुफ़रान है
काश ! आते साल हो 'अत्तार को रमज़ाँ नसीब
या नबी ! मीठे मदीने में, बड़ा अरमान है