
Ye To Khwaja Ka Karam Hai
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टाइटल : Mohammad Na Hote To Kuch Bhi Na Hota
श्रेणी (कटेगरी) : कव्वाली के बोल (लीरिक्स)
लेखक/गीतकार : अनवर गुजराती
नातख्वान/कलाकार: चांद अफज़ल कादरी
जोड़ा गया : 09 Sep, 2023 03:59 PM IST
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इस्लाम का उसूल कोई मानता नहीं,
रोजा नमाज हज जकात जानता नहीं
रूये ज़मीन पे आते ना जो आमिना के लाल,
कोई खुदाए पाक को पहचानता नहीं
ना कलियाँ ही खिलती ना गुल मुस्कुराते,
अगर बागे हस्ती का माली ना होता,
ये सब है मेरे कमली वाले का सदका,
मोहम्मद ना होते तो कुछ भी ना होता
ज़मीन आसमान चांद तारे ना होते,
ये दुनिया के रंगीन नज़रें ना होते,
ना गुंचे चटकते ना गुल मुस्कुराते,
न पंछी ही वेहदत के नगमे सुनाते,
ना गुलशन में आती ये रंगीन बहारें,
बरसती ना रहमत की रिमझिम फुहारें,
गुलों में ये रनगे जमाली ना होता,
मोहम्मद ना होते तो कुछ भी ना होता
ये सब है मेरे कमली वाले का सदका,
मोहम्मद ना होते तो कुछ भी ना होता
तुफैले मोहम्मद ये दुनिया बनी है,
इन्हीं के कदमों से ये धरती सजी है,
पहाड़ों समंदर ये गुलशन ये सेहरा,
ये दिन रात ये सुबह ओ शाम ओ सवेरा,
ना आगाज होता ना अंजाम होता,
ना कुरान का जारी फरमान होता,
निशान तक भी दुनिया का बाकी ना होता,
मोहम्मद ना होते तो कुछ भी ना होता
ये सब है मेरे कमली वाले का सदका,
मोहम्मद ना होते तो कुछ भी ना होता
कहाँ फिर ये हिलकत की तख़लीक होती,
कहाँ फिर सदाकत की तस्दीक होती,
ये आदम का पुतला बनाया ना होता,
नबी कोई दुनिया में आया ना होता,
ना याकूब यूसुफ़ ना ईसा ना मूसा,
ना दऊद याह याह ना नूह ना जिक्रिया,
नबुवत का ये सिलसिला ना होता,
मोहम्मद ना होते तो कुछ भी ना होता
ये सब है मेरे कमली वाले का सदका,
मोहम्मद ना होते तो कुछ भी ना होता
ना अल्लाह हो अकबर की आती सदाएं
कबी ख़तम होता ना दौरे जहालत,
बदलती ना हरगिज़ ज़माने की हालत,
ना काबे में होती अज़ाने बिलाली,
बुतों से कभी काबा होता ना खाली
ना अल्लाह हो अकबर की आती सदाएं
अगर नूरे हक का वो साथी ना होता,
खुदा का कोई भी पुजारी ना होता,
ना अल्लाह हो अकबर की आती सदाएं,
ना बंदों की मकबूल होती दुआएं,
ना आईन आते ना कुरान आता,
ना उम्मत की बख्शीश का सामान आता,
ना घर घर में कुरान की होती तिलावत,
ना अल्लाह की कोई करता इबादत,
कहीं पर भी ज़िक्र-ए-इलाही ना होता,
मोहम्मद ना होते तो कुछ भी ना होता
ये सब है मेरे कमली वाले का सदका,
मोहम्मद ना होते तो कुछ भी ना होता
ख़ुदा जाने क्या होता महशर में अनवर,
ना आते जहां में जो मौला के दिलबर,
गुनहगार देते तब किसकी दुहाई,
ना मिलती कभी आसियों को रिहाई,
खताओ पे आसी बहुत गिड़गिड़ाते,
अज़ाबे इलाही से पर बच न पाते,
खुदा बख्श देने पर राज़ी ना होता,
मोहम्मद ना होते तो कुछ भी ना होता
ये सब है मेरे कमली वाले का सदका,
मोहम्मद ना होते तो कुछ भी ना होता
नबी की जो जलवा नुमाई ना होती,
खुदा की कसम ये खुदाई ना होती
ये सब है मेरे कमली वाले का सदका
ज़माने में हर सिमत रहता अँधेरा,
सदा रहता तारिकियों का बसेरा
ये सब हैं मेरे कमली वाले का सदका
अगर पैदा मौला के दिलबर ना होते,
ये मेहराबों मिम्बर मुनव्वर ना होते
ये सब है मेरे कमली वाले का सदका
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